पापा खो गए, उन अंधेरी रातों में,
भूली बिसरी यादों में,
समंदर की गहराई में,
आकाश की ऊंचाई में,
मैंने उन्हें दर-दर ढूंढा,
हर शहर हर मंज़र मैंने घूमा,
पर वो ना मिले किसी भी राह में,
ख़त्म हो गए उनसे सारे शिकवे-गिले,
अब हमें उनके प्यार का अहसास हुआ,
हम गए उनसे माफी मांगने,
पर वो जा चुके थे किसी और जहान में,
अब हमें उनकी याद आती है, दिन-रात सताती है
प्रदीप राघव...
भूली बिसरी यादों में,
समंदर की गहराई में,
आकाश की ऊंचाई में,
मैंने उन्हें दर-दर ढूंढा,
हर शहर हर मंज़र मैंने घूमा,
पर वो ना मिले किसी भी राह में,
ख़त्म हो गए उनसे सारे शिकवे-गिले,
अब हमें उनके प्यार का अहसास हुआ,
हम गए उनसे माफी मांगने,
पर वो जा चुके थे किसी और जहान में,
अब हमें उनकी याद आती है, दिन-रात सताती है
प्रदीप राघव...
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