Wednesday 23 October 2013

खज़ाना या अंधविश्वास...

खज़ाना या अंधविश्वास...

इधर यूपी के उन्नाव में खुदाई चल रही है उधर पिताजी की एक बात याद आ रही है, पिताजी अक्सर कहा करते थे ज़मीन के नीचे खज़ाना होता है,उनका कहना था जब वो छोटे थे,लगभग हमारी उम्र के..उस ज़माने में ज़मीन से पुराने सिक्के निकल आया करते थे,पुराने बर्तन,खज़ाना या कोई धातु। पिताजी की बातें काफी रोचक हुआ करती थीं,हमें सुनने में मज़ा आता था,पड़ोस के बच्चे भी उनके क़िस्से सुनने को जमा हो जाया करते थे।लेकिन ये अरसे पहले की बात थी,आज हालात बदल गए हैं। अब तक़रीबन 80 बरस बाद,पिताजी की उम्र के मुताबिक,ज़मीन से कुछ निकलता नहीं बल्कि निकलवाने की कोशिश ज़रूर की जाती है।जैसा कि उन्नाव के डौंडियाखेड़ा में हो रहा है।संत शोभन सरकार का सपना लोगों की उम्मीद बन गया है।गांव में क़िले के आसपास इन दिनों मेला जुटा है।जलेबी,समोसे,ब्रेड पकोड़ा इत्यादि-इत्यादि।अखिलेश के प्रदेश में खजाने की खुदाई चल रही है,अखिलेश सरकार खजाना निकलने से पहले ही उस पर अपना दावा ठोंक चुकी है।भले ही वहां फूटी कौड़ी ही ना निकले। डौंडियाखेड़ा गांव शायद उस दौरान भी इतना चर्चित ना हुआ होगा जब यहां राजा राव रामबख्श सिंह की सल्तनत थी।लेकिन आज डौंडियाखेड़ा गूगल पर जगह बना चुका है।ठीक अक्षय कुमार की फिल्म जोकर के गांव पगलापुर की तरह।लोग डौंडियाखेड़ा की तुलना पीपली लाइव से भी कर रहे हैं लेकिन जोकर फिल्म से भी इसकी तुलना की जाए तो बुरी बात नहीं,क्योंकि अगर खज़ाना मिला तो ये गांव भी नक्शे में अपनी अलग पहचान बना ही लेगा।लेकिन ये हकीक़त हो ये कोई जरूरी नहीं और ना ग़लत नहीं होगा। गांव में खज़ाने की ख़बर जंगल की आग की तरह फैली है,आसपास के गांवों के लोग भी डौंडियाखेड़ा में बसेरा डाले बैठे हैं।खज़ाने पर अपना दावा करने वालों की भी कोई कमी नहीं।लेकिन खुदाई में अभी तक कुछ मिला ही नहीं,हां कुछ 1500 साल पुरानी ईंटें ज़रूर मिली हैं।पिताजी की कुछ और बातें ज़ेहन में आ रही हैं,वो कहते थे कि अमीरी बढ़ने से ग़रीबी बढ़ी है,उन दिनों ये बात समझ से परे थी पर आज समझ आती है।उनका कहना था कि उस ज़माने में लोगों के पास पैसा ना था पर दो ज़ून की रोटी चैन से मिल जाती थी,लोगों के पास सोना ना था,लोग चैन से सोते थे,और आज हालात इसके उलट हैं,लोगों के पास पैसा है पर चैन नहीं सोना है पर नींद नहीं।आजकल पैसे और खजाने ने लोगों की नींद उड़ा दी है,डौंडियाखेड़ा की तरह।पिताजी कहते थे बरसात ज्यादा होने पर मिट्टी के भीतर से सिक्के बाहर आ जाया करते थे,खेतों में गड़े हुए घड़े मिल जाते थे,खज़ानों से भरे। लेकिन आज इसकी कल्पना करना बेमानी है। किसी बेवकूफी से कम नहीं,इसे अंधविश्वास ना कहें तो और क्या कहें।क्या हम सपनों पर जीते हैं।क्या कल्पनाओं को हकीक़त में गढ़ा जा सकता है।मेरे ख्याल से नहीं। लेकिन 21वीं सदी में हम यूएन में बैठने वाले देश के लोग ऐसी कल्पनाओं के पीछे कैसे भाग सकते हैं।क्या आसाराम जैसे ठगियाओं से अंधविश्वास का सबक हमें नहीं मिल पाया है जो देश को अंधेरे में रखकर पाखंड और झूठ के सहारे लोगों के भगवान बन बैठते हैं।अब ऐसे संत शोभन से इस समाज को सबक ले लेना चाहिए।कि वो ऐसे सपने देश को ना दिखाए जो कभी पूरे ही ना हों बल्कि खुद सपनों को साकार करके देश को बेहतर बनाएं,इसी में सबकी भलाई है।


प्रदीप राघव