Tuesday 16 July 2013

जब मेट्रो गाड़ी आती है-कविता

जब मेट्रो गाड़ी आती है,
धड़कन दिल की बढ़ जाती है,
सफ़र हमारा रोज़ाना का मेट्रो गाड़ी से होता है,
पर एक बरस है हो चला ना कोई हमसे मिलता है...
ना कोई हमसे मिलता है ना कोई हमसे बतियाता,
मेट्रो की तन्हाई में हम खुद से अब बातें किया करते हैं,
चारों तरफ ख़ामोशी,पर कुछ लोग रेडियो सुना करते हैं,
एक सन्नाटा सा कौंध जाता है...
पर हमारे दिल को सुकून आ जाता है,
जब छात्रों का झुंड सवार हो जाता है,
छात्र आपस में बतियाते हैं,
सब उनके मुंह को ताक-ताक,अपने-अपने स्टेशन उतर जाते हैं।



Sunday 7 July 2013

यूं तो मेरी ख़ामोशी भी...

यूं तो मेरी ख़ामोशी भी बहुत कुछ कहती थी,
मगर दिल की दास्तां में ज़ुबां का साथ ज़रूरी था...प्रदीप राघव