जब मेट्रो गाड़ी आती है,
धड़कन दिल की बढ़ जाती है,
सफ़र हमारा रोज़ाना का मेट्रो गाड़ी से होता है,
पर एक बरस है हो चला ना कोई हमसे मिलता है...
ना कोई हमसे मिलता है ना कोई हमसे बतियाता,
मेट्रो की तन्हाई में हम खुद से अब बातें किया करते हैं,
चारों तरफ ख़ामोशी,पर कुछ लोग रेडियो सुना करते हैं,
एक सन्नाटा सा कौंध जाता है...
पर हमारे दिल को सुकून आ जाता है,
जब छात्रों का झुंड सवार हो जाता है,
छात्र आपस में बतियाते हैं,
सब उनके मुंह को ताक-ताक,अपने-अपने स्टेशन उतर जाते हैं।
धड़कन दिल की बढ़ जाती है,
सफ़र हमारा रोज़ाना का मेट्रो गाड़ी से होता है,
पर एक बरस है हो चला ना कोई हमसे मिलता है...
ना कोई हमसे मिलता है ना कोई हमसे बतियाता,
मेट्रो की तन्हाई में हम खुद से अब बातें किया करते हैं,
चारों तरफ ख़ामोशी,पर कुछ लोग रेडियो सुना करते हैं,
एक सन्नाटा सा कौंध जाता है...
पर हमारे दिल को सुकून आ जाता है,
जब छात्रों का झुंड सवार हो जाता है,
छात्र आपस में बतियाते हैं,
सब उनके मुंह को ताक-ताक,अपने-अपने स्टेशन उतर जाते हैं।