साहित्य-संकलन
साहित्य और संस्कृति का साझा मंच...
Sunday 7 July 2013
यूं तो मेरी ख़ामोशी भी...
यूं तो मेरी ख़ामोशी भी बहुत कुछ कहती थी,
मगर दिल की दास्तां में ज़ुबां का साथ ज़रूरी था...प्रदीप राघव
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment