Sunday 23 June 2013

लिखने थे कुछ अक्स उसके,,,
पर क्या करूं ये कलम ही तो है, जो हाथ से फिसल जाती है...
उतारना चाहा उसकी तस्वीर को जिस पत्थर पर...वो पत्थर ही बिखर जाता है..
अब तुझसे और क्या कहूं,,,कहने की कोशिश करूं तो आवाज़ रूठ जाती है....प्रदीप राघव..

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