Thursday 6 June 2013

कैसे लगेगी आतंक के लाल गलियारे पर लगाम..?



कैसे लगेगी आतंक के लाल गलियारे पर लगाम...


ज़मीन औऱ हक़ की लड़ाई लड़ने वाले नक्सलियों को आतंकवाद की संज्ञा दी जाने लगी है।दक्षिण में आंध्र प्रदेश से लेकर पूर्व में पश्चिम बंगाल तक फैला लाल गलियारा इन्हीं की देन है।और लाल आतंक फैलाने  वाले ये नक्सली कहीं बाहर दूर-दराज से ना आकर उन्हीं गांवों के निवासी हैं जहां के जंगलों में इन्होंने कब्ज़ा जमाया है जिन्होंने एक आंदोलन शुरू तो किया लेकिन ख़त्म नहीं कर पाए।ना तो इन राज्यों की सरकारों के पास इनका इलाज है और ना ही केंद्र सरकार आज़तक इनका कोई ठोस हल निकाल पाई है।लेकिन इनके द्वारा हो रहे लाल आतंक पर राजनीति भलि-भांति कर लेती है।लेकिन आतंक के लाल गलियारे पर आज़तक कोई ठोस रणनीति नहीं बना पाई है।कुछ राजनेताओं ने पिछले दिनों माना कि सेना ही इनका इलाज हो सकता है।लेकिन सच्चाई इससे परे है।क्योंकि कुछ राज्यों में इनके पास सेना से अच्छे हथियार हैं।जबकि आज़ भी राज्यों की पुलिस ज़ंग लिए हथियार लेकर घूमती है।केंद्रीय गृह सचिव ने पिछले दिनों कहा कि बरसात में इनको घेरेंगे।लेकिन 100-200 या 1000-2000 लोगों को तो सेना ढेर कर सकती है।लेकिन पूरे के पूरे गांवों से सेना कैसे लोहा ले सकती है।ये हालात के मारे ग्रामीण ही तो हैं जिनकी तुलना आज़ आतंकियों से की जा रही है।इनकी ज़मीनों के लिए लड़ाई लड़ने का काम सीमीएम नेता चारू मज़ूमदार और कानू सन्याल ने किया था।पश्चिम बंगाल के नक्सबाड़ी में फैली ये चिंगारी आज आग बनकर बरस रही है।सन् 2004 में पुलिस के आला अधिकारियों के बीच हुई मीटिंग में ही ये बात सामने आई थी कि ये समस्या और भी गंभीर होती जाएगी।नतीजा हमारे सामने है।सबसे पहले ये लोग पुलिस अधिकारियों और सीआरपीएफ जवानों पर अपना गुस्सा फोड़ते थे लेकिन आज हालात बदलते जा रहे हैं।अब नक्सली और ज़्यादा हिंसक होते जा रहे हैं।25 मई को छत्तीसगढ़ में कांग्रेसियों के काफिले पर हमले के बाद देश में फिर से बहस छिड़ गई है कि इस समस्या को जड़ से कैसे ख़त्म किया जाए।एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र को भेजे पत्र में हमलावर नक्सली संगठन ने कांग्रेसी काफिले पर हमले की जिम्मेदारी ली थी और साथ ही ये भी कहा था कि वो सलवा जुड़ूम शुरू करने वाले कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा को मारना चाहते थे,ड्राईवर और खलासियों को नहीं।इसका साफ-साफ मतलब ये निकलता है कि वो सरकारी नीतियों को पसंद नहीं करते ।सलवा जुड़ूम कार्यकर्ताओं ने जब उनके ख़िलाफ हथियार उठाए तो उन्हें ये हबात अखरने लगी।इसी वज़ह से कर्मा को मौत की नींद सुला दिया गया।लेकिन सवाल ये है कि इस समस्या से कैसे निबटा जाए।सरकार की कमज़ोर नीतियों की वज़ह से लाल गलियारा हिंदुस्तान के और राज्यों की तरफ भी पैर पसार रहा है।इसलिए गंभीर होती जा रही इस नक्सलवाद की समस्या से निबटने के लिए सरकार को पहले इनकी मांगों को सुनना चाहिए,और इनके इतिहास को जानना चाहिए।इनकी मांगों पर अमल करना चाहिए,जिस ज़मीन के लिए ये लड़ाई लड़ रहे हैं वो ज़मीन इनको सौंपनी होगी,उसके बाद ही कोई ठोस हल निकल पाएगा।अगर सरकार ये करने में नाकाम रही तो लाल आतंक का ये मंज़र दिन-ब-दिन और भी ख़ौफनाक होता जाएगा।

प्रदीप राघव..

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