Tuesday 27 December 2016

चचा ग़ालिब की जयंती पर

वो आगरा में पैदा हुए..दिल्ली में आकर बसे..यहीं के होकर रह गए..दिल्ली में मुगल काल के आख़िरी बादशाह बहादुर शाह ज़फर उनके ख़ूब मुरीद हुए..सिर्फ़ दिल्ली, आगरा और कलकत्ता में ही नहीं, जहां भी गए उर्दू और फ़ारसी को पहचान दिलाई..उनके लिखे शेर बहुत कुछ कहते हैं..उन्होंने जैसा लिखा वैसा कोई ना लिख पाया..'वो हर एक बात पे कहना कि यूं होता तो क्या होता'..वो सही कहते थे 'ना था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ ना होता तो ख़ुदा होता'..'हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है'..ऐसे ही ना जाने कितने शानदार शेर कहने वाले असद को नमन..
वाकई 'हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ग़ालिब का अंदाज़-ए-बयां और'

मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग खां 'ग़ालिब' की जयंती पर उन्हें याद कर आंखें भर आई है

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